आबो-हवा

हवाएं और आग की लपटें, ना तो सरहद देखती हैं, न जाति, और ना धर्म...! 
जलाने के लिए क्या आग ही कम हैं ? जो आग को और 'हवा' दे दी जाती है !....
हवा ! वो भी जहरपूर्ण !!

राजनैतिक समाज सेवक, सत्ता सेवक और धार्मिक सेवक 'समानान्तर भगवान' बन बैठे हैं !
सरकारें, धर्म चला रही हैं और 'सामानांतर राजनैतिक भगवानों' ने सरकार और कानून व्यवस्था चलाने की जिम्मेदारी उठा रखी है !
एवं इस धार्मिक-राजनैतिक पेशे को बखूबी निभा भी रही हैं !

ये आबो-हवा का ही असर है शायद....
जिस उम्र में, हाथ में कलम-किताबें होनी चाहिए और कन्धों पर जिम्मेदारियों के बोझ का एहसास, उस उम्र में हाथ में तलवारें-कटारें-भालें और कन्धों पर अपनों की रक्तरंजित लाशें !
..जिसे शायद इसी महिमामंडित 'आबो-हवा' ने उपहारस्वरूप दिया होगा !

'नीति,निर्णय निर्माण प्रक्रिया' अब 'सतत स्थिर प्रक्रिया' है ! वो सदनों में पारित नहीं होती, बल्कि सड़को पर जूझते,अपने 'संघर्ष और लाचारी' का एहसास कराती है ! 
शायद सदन आरामगृह है ...'सत्ता सेवकों' के थकने के बाद यहाँ आराम मिलता होगा !

दर्द होता है !..
हर कोई, सब कुछ,अस्तित्व के लिए संघर्षशील हैं...
'सरकारें छोड़' सब खतरे में हैं,भाषा,जाति, वर्ग, इंसान, संप्रदाय,धर्म,राष्ट्र,आस्था,विश्वास, ईमान सब कुछ..
एक विडंबनापूर्ण दर्द...!!

'जगत निर्माता',जगत पालक, हमारे 'इष्ट' भी 'खतरे की जद' में' हैं, अस्तित्व संघर्ष युद्ध में !
कभी 'मकबूल' कैनवास पर 'आग्रह चरित्र' उकेर जाता है, तो कभी 'मुन्तशिर' परदे पर 'घृणित कुंठा' बिखेर जाता है ! 
शायद 'आस्था का व्यवसायवाद'...!!

'खतरे के खतरनाक खेल' का बहाव अब 'खतरे के निशान' से ऊपर 'बहता-खेलता' बह रहा है ! 
शायद 'खतरा' भी अब अपने अस्तित्व संघर्ष के 'खतरनाक खतरे की जद' में है !!
सब कुछ खतरे में ... 

और 'खतरे से निकालने' की जद्दोजहद में हैं...
"हम खतरे के लोग" और बिक चुके 'मृत कलमकारों' की रक़्तपूर्ण स्याही...

अगर चलती रही यूं ही...
सियासी टुकड़ों पर पलने वाली जंग बेलगाम !
नहीं बचेगे इंसां और... 
इसको जिंदा रखने वाली 'आबो-हवा' !!

@ShivBHU

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

मैं आस्तिक हूँ !!

नारी...!!